आज फिर से आ पड़ी है वो जरुरत, बादलों के पार जाकर झाँकने की देखकर गहरा तिमिर क्या सोंचता है, छोड़ दे आदत वो अपनी काँपने की

बुधवार, 8 मई 2013

देश हमें देता है सब-कुछ

देश हमें देता है सब-कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें
जीवन गर कंटकमय हो , विपदाओं से लड़ना सीखें
सूरज हमें रोशनी देता , हवा हमें नया जीवन देती
भूख मिटाने को हम सबकी, धरती पर होती है खेती
औरों का हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें
देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखें

पथिक को तपते दोपहर में, पेड़ सदा देते हैं छाया
सुमन सुगंध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला
त्यागी तरूओं के जीवन से, हम भी तो कुछ करना सीखें
देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें
जीवन गर कंटकमय हो,विपदाओं से लड़ना सीखें

जो अनपढ़ हैं उन्हें शिक्षा दें, जो चुप हैं उनको वाणी दें
जो पिछड़े हैं उन्हें बढ़ाएँ, प्यासी धरती को पानी दें
हम मेंहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखें
 देश हमें देता है सब कुछ ,हम भी तो कुछ देना सीखें ....

2 प्रतिक्रियाएँ:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर

Adarsh Kumar Patel ने कहा…

आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ....