![]() |
है कवि वो |
सागर की लहरों से मोती निकाल
शब्द मोती को पिरो
कविता की माला मे दे ढाल
है कवि वो .....
जिसके मोती करते हैं झंकार भी
कलम जिसकी कर सके प्रहार भी
शब्द के ब्रह्मास्त्र हैं जो
बस उसी के पास हैं वो
है कवि वो .....
रक्त जिसका खौलता है
देखकर कुरीतियाँ
जो सदा करता है
निर्धारित स्वयं ही नीतियाँ
है कवि वो .....
0 प्रतिक्रियाएँ:
एक टिप्पणी भेजें