आज फिर से आ पड़ी है वो जरुरत, बादलों के पार जाकर झाँकने की देखकर गहरा तिमिर क्या सोंचता है, छोड़ दे आदत वो अपनी काँपने की

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

है कवि वो

है कवि वो


सागर की लहरों से मोती निकाल
शब्द मोती को पिरो
कविता की माला मे दे ढाल
है कवि वो .....

जिसके मोती करते हैं झंकार भी
कलम जिसकी कर सके प्रहार भी
शब्द के ब्रह्मास्त्र हैं जो
बस उसी के पास हैं वो
है कवि वो .....

रक्त जिसका खौलता है
देखकर कुरीतियाँ
जो सदा करता है
निर्धारित स्वयं ही नीतियाँ  
है कवि वो .....



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