जनलोकपाल बिल ...... जब से चर्चा में आया है , परेशान कर रक्खा है। भारत–एक ऐसा देश जिसमें कोई भी कार्य जल्दबाज़ी में नहीं होता ... बल्कि बड़े ही आराम और शांतिपूर्ण तरीके से तथा सुनियोजित ढंग से होता है। वहाँ लोकपाल जैसा बड़ा मुद्दा क्यूँ और बड़ा बनाया जा रहा है।खासकर जब वो सरकार के पक्ष में नहीं है .......... तब तो और भी आराम से विचार-विमर्श की आवश्यकता है। जल्दबाज़ी का कोई मतलब ही नहीं । आज सातवाँ दिन है अन्ना हज़ारे जी के अनशन का ............
. । मगर भारत सरकार को इसकी सुध लेने की ज़रूरत नहीं है।
“आखिर क्या है ज़रूरत .......सबकुछ ठीक ही तो चल रहा है। बदलाव किसके लिए?कौन चाहता है बदलाव?यह भारत की जनता !इसके चाहने से क्या होता है ?होता वही जो मंजूरे पार्लियामेंट होता है।
कौन बहाये व्यर्थ में पसीना? और ऊपर से इतनी गर्मी।
शीतकालीन सत्र की बात होती तो सोंचते भी कुछ!
हमें सोंचने में थोड़ा वक़्त लगेगा! थोड़ा और भी लग सकता है,उसके बाद कुछ सोचेंगे!
और वैसे भी सभी फैसले हम बहुत सोच-समझ कर सभी की स्वीकृति से ही लेते हैं।”
खैर कोई बात नहीं।कहाँ भटक गए आप?
मुझे कुछ दिखाई दे रहा है
कुछ देखा आपने .....
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3 प्रतिक्रियाएँ:
samsamayik lekh ke lie aapko bahut2
dhanyawad.
aapko bahut shubhkaamnayein janmashtmi ki...
saath hi mere blog par aane ke liye dhanyavaad........
Nice post, padhkar achchha laga.
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