आज फिर से आ पड़ी है वो जरुरत, बादलों के पार जाकर झाँकने की देखकर गहरा तिमिर क्या सोंचता है, छोड़ दे आदत वो अपनी काँपने की

रविवार, 21 अगस्त 2011

आज आँगन में .........



को उम्मीद की
छोटी किरण
दिखती है मुझको
आज आँगन में
किसी पंछी के कोई
गीत गूँजे
आज इस वन में

न जाने कब से
सूना था जो आँगन
आज महका है
कोई भँवरा भी
इसकी ओर देखो
आज बहका है.....

वो फिर से हो
रही है उर्वरा
धरती जो बंजर थी
जहां कल तक
किसी भी मेघ की
होती नज़र न थी..........

कहीं बदलाव सा
 मैं देखता हूँ

आज जीवन में 
कोई उम्मीद की छोटी किरण
दिखती है मुझको
आज आँगन में .......


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