आज फिर से आ पड़ी है वो जरुरत, बादलों के पार जाकर झाँकने की देखकर गहरा तिमिर क्या सोंचता है, छोड़ दे आदत वो अपनी काँपने की

रविवार, 24 जुलाई 2011

सत्य और परमात्मा

मनुष्य को बनना है दर्पण........... 

मनुष्य को बनना है दर्पण ;चुप,एक लहर भी न हो मन पर ।      
तो उसी क्षण में, जो है ........
 उसी का नाम परमात्मा हम कहें ,सत्य कहें, जो
भी नाम देना चाहें नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है ।
 नाम के झगड़े सिर्फ बच्चों के झगड़े हैं ।
 कोई भी नाम दे–दें –एक्स ,वाय ,जेड कहें तो भी चलेगा ।
 वह जो है , अननोन ,अज्ञात , वह हमारे दर्पण में प्रतिफलित हो जाता है और हम जान पाते हैं ।
 तब है आस्तिकता ,तब है धार्मिकता
,तब धार्मिक व्यक्ति का जन्म होता है ।
 अद्भुत है आनंद उसका ।
 सत्य को जानकार कोई दुखी हुआ हो ,ऐसा सुना नहीं गया ।
 सत्य को बिना जाने कोई सुखी हो गया हो।ऐसा भी सुना नहीं गया । सत्य को जाने बिना आनंद मिल गया हो किसी को ,

इसकी कोई संभावना नहीं है ।
 सत्य को जानकार कोई आनंदित न हुआ हो ,ऐसा कोई अपवाद नहीं है । सत्य आनंद है ,सत्य अमृत है
,सत्य सब कुछ है – जिसके लिए हमारी आकांक्षा है
, जिसे पाने की प्यास हैप्रार्थना है ।

                                     - ओशो 




1 प्रतिक्रियाएँ:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ...अर्थपूर्ण विचार