मनुष्य को बनना है दर्पण ;चुप,एक लहर भी न हो मन पर ।
तो उसी क्षण में, जो है ........
उसी का नाम परमात्मा हम कहें ,सत्य कहें, जो
भी नाम देना चाहें । नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है ।
नाम के झगड़े सिर्फ बच्चों के झगड़े हैं ।
कोई भी नाम दे–दें –एक्स ,वाय ,जेड कहें तो भी चलेगा ।
वह जो है , अननोन ,अज्ञात , वह हमारे दर्पण में प्रतिफलित हो जाता है और हम जान पाते हैं ।
तब है आस्तिकता ,तब है धार्मिकता
,तब धार्मिक व्यक्ति का जन्म होता है ।
अद्भुत है आनंद उसका ।
सत्य को जानकार कोई दुखी हुआ हो ,ऐसा सुना नहीं गया ।
सत्य को बिना जाने कोई सुखी हो गया हो।ऐसा भी सुना नहीं गया । सत्य को जाने बिना आनंद मिल गया हो किसी को ,
इसकी कोई संभावना नहीं है ।
सत्य को जानकार कोई आनंदित न हुआ हो ,ऐसा कोई अपवाद नहीं है । सत्य आनंद है ,सत्य अमृत है
,सत्य सब कुछ है – जिसके लिए हमारी आकांक्षा है
, जिसे पाने की प्यास है, प्रार्थना है ।
- ओशो
1 प्रतिक्रियाएँ:
बहुत सुंदर ...अर्थपूर्ण विचार
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