आज फिर से आ पड़ी है वो जरुरत, बादलों के पार जाकर झाँकने की देखकर गहरा तिमिर क्या सोंचता है, छोड़ दे आदत वो अपनी काँपने की

सोमवार, 23 मई 2011

आज़ादी आई नहीँ अभीँ...

आज़ादी आई नहीँ अभी
ये तो बस खीँचा तानी है
कोई अंकुर फूटा ही नहीँ
बहता रुधिर भी पानी हैं......

2 प्रतिक्रियाएँ:

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बिल्‍कुल सच कहा है!

blogtaknik ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार.