नया स्वर खोजने वाले ! तलातल तोड़ता जा
कदम जिस पर पड़ें तेरे ,सतह वह छोड़ता जा
नयी झंकार की दुनिया खतम होती कहां पर
वही कुछ जानता है , सीमा नहीं जो मानता है
वहां क्या है की फव्वारे जहां से छूटते हैं ?
जरा सी नम हुई मिटटी की अंकुर फूटते हैं
बरसता जो गगन से ,वह जमा होता मही में ,
उतरने को अतल में क्यों नहीं हठ ठानता है ?
ह्रदय जल में सिमट कर डूब ,इसकी थाह तो ले
रसों के ताल में नीचे उतर अवगाह तो ले
सरोवर छोड़ कर तू बूँद पीने की खुशी में ,
गगन के फूल पर शायक वृथा संधानता है
2 प्रतिक्रियाएँ:
very nice........thanks
thanks a lot to appreciate this .I am very grateful.........
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